आधुनिक भारतीय साहित्य भाग 2
भारतीय स्वच्छंदतावाद: भारतीय स्वच्छदंतावाद की प्रवृत्ति को उन तीन महान ताकतें, श्री अरविंद (1872-1950) की मनुष्य में ईश्वर की तलाश, टैगोर की प्रकृति तथा मनुष्य में सौन्दर्य की खोज और महात्मा गांधी ने प्रारम्भ किया था I
टैगोर प्रकृति और समूचे विश्व में व्याप्त एक सर्वोपरि सिद्धान्त से परिचित थे । यह सर्वोपरि सिद्धान्त या अज्ञात रहस्यात्मकता सुन्दर है क्योंकि यह ज्ञात के माध्यम से चमकता है और हमें मात्र अज्ञात में ही चिरस्थायी स्वतंत्रता मिलती है । कई आभाओं वाले प्रतिभाशाली व्यक्ति टैगोर ने उपन्यास, लघु कथाएं, निबंध और नाटक लिखे थे और इन्होंने नए प्रयोग करना कभी भी बन्द नहीं किया । इनकी बांग्ला में कविताओं के संग्रह गीतांजलि को 1913 में नोबल पुरस्कार मिला था । हिन्दी में स्वच्छंदतावादी कविता के युग को छायावाद, कन्नड़ में इसे नवोदय और ओड़िया में सबुज युग कहते हैं ।आधुनिक युग की रोमानी प्रकृति भारतीय काव्य की परम्परा का अनुसरण करती है जिसमें रोमानीवाद ने वैदिक प्रतीकात्मकता के आधार पर अधिक और मूर्तिपूजा के आधार पर कम प्रकृति और मनुष्य के बीच वेदान्तिक (एक वास्तविकता का दर्शनशास्त्र) एकत्व के बारे में बताया है । उर्दू के महानतम कवि मोहम्मद इकबाल (1877-1898), जिसका स्थान गालिब के बाद है, ने प्रारम्भ में रोमानी-व-राष्ट्रीय चरण के अपने काव्य को अपनाया । इनका उर्दू का सर्वोत्तम संग्रह बंग-ए- दरा (1924) है । अखिल-इस्लामीवाद की इनकी खोज ने मानवता के प्रति इनकी समग्र चिन्ता में बाधा नहीं डाली ।
महात्मा गांधी
गांधीजी ने आम आदमी की भाषा बोली और ये परिपक्व लोगों के साथ थे । सत्यता और अहिंसा इनके हथियार थे । मोहनदास कर्मचन्द गांधी (गुजराती, अंग्रेजी और हिन्दी / 1869-1948) और टैगोर ने भारतीय जीवन तथा साहित्य को प्रभावित किया एवं प्राय: ये एक दूसरे के पूरक हुआ करते थे । ये परम्परागत मूल्यों के पक्षधर थे और औद्योगिकीकरण के विरोधी थे । ये शान्ति और आदर्शवाद के प्रचारक बन गए थे ।
गांधीवादी वीरों ने उस समय के कथासाहित्य से विश्व को अभिभूत कर दिया था । गांधी मिथक का सृजन लेखकों ने नहीं बल्कि लोगों ने किया था और लेखकों ने अपने काल के दौरान महान उद्बोधन के एक युग को चिह्नित करने के लिए इसका प्रभावी रूप से प्रयोग किया । इनकी लोकप्रियता इनकी पुस्तकों के विभिन्न भारतीय भाषाओं में उपलब्ध असंख्य अनुवादों के माध्यम से न केवल बांग्ला पाठकों के बीच ही नहीं बल्कि भारत के अन्य भागों के लोगों के बीच भी आज तक अक्षुण्ण बनी हुई है ।
प्रगतिशील साहित्य
गांधी और मार्क्स दोनों ही साम्राज्यवाद के विरोध तथा समाज के वंचित वर्गों के प्रति चिन्ता से प्रेरित हुए थे । प्रगतिशील लेखक संघ की मूल रूप से स्थापना 1936 में मुल्कराज आनन्द (अंग्रेजी) जैसे लन्दन में कुछ प्रवासी लेखकों ने की थी । भारतीय साहित्यिक दृश्यपरक में तीस के दशक में मार्क्सवाद का आगमन एक ऐसा घटनाचक्र है जिसे भारत कई अन्य देशों के साथ साझा करता है । हिन्दी में छायावाद को प्रगतिवाद के नाम से प्रसिद्ध एक प्रगतिशील शैली ने चुनौती दी थी ।
माणिक वंद्योपाघ्याय मार्क्सवाद के सबसे अधिक प्रसिद्ध बांग्ला उपन्यासकार थे । वैक्कम मोहम्मद बशीर, एस के पोट्टेक्काट और तकषि शिवशंकर पिल्लै जैसे मलयाली कथा-साहित्य लेखकों ने उच्च साहित्यिक मूल्य के प्रगतिशील कथा-साहित्य की रचना करके इतिहास रच दिया था । इन्होंने साधारण मनुष्य के जीवन का और उन मानव संबंधों का गवेषण करके अपने लेखन में नए विषयों को शामिल किया जिनको आर्थिक तथा सामाजिक असमानताओं ने प्रोत्साहित किया था । प्रगतिशील लेखकों के आन्दोलन ने जोश मलीहाबादी और फैज अहमद फैज जैसे उर्दू के जाने-माने कवियों का ध्यान आकर्षित किया।
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